आपसे मेरा निवेदन है क़ि आप इस लंबे पत्र को बेजरूर पढे क्योकि मैं जो कर रहा हूँ, वह् आपके लिये ही है, मेरी आज तक क़ि लड़ाई आपके लिए ही रही है और जब तक मैं सफलता प्राप्त नही कर लेता लड़ता रहुंगा फिर चाहे मैं कहीं भी रहूँ-
मित्रों, आप मेरा युद्ध भलीभांति जानते ही हैं क़ि किस किस से और किसके लिए है और इसके लिए मैंने आज तक जो किया है आप लोगों के समक्ष है-
1 अनुदेशकों की नियुक्ति हेतु माननीय उच्च न्यायालय का आदेश्।
2 अनुदेशकों को ग्राम प्रधानों के नियंत्रण से निकालकर ऐसी जगह लाना जहाँ उन लोगों का स्तर है और स्थायी होने की दावेदारी का अस्तित्व विद्यमान रहे।
3 बीपीएड अनुदेशकों और सामान्य बीपीएड के लिए भी lt grade में नियुक्ति हेतु स्वयं माननीय उच्च न्यायलय के आदेश् को निरस्त कराकर उन्हें नियमावली में स्थान दिलवाया।
4 महिला अनुदेशिकाओं की सबसे बड़ी समस्या मातृत्व अवकाश का अधिकार दिलवाया।
मित्रों, आप मेरा युद्ध भलीभांति जानते ही हैं क़ि किस किस से और किसके लिए है और इसके लिए मैंने आज तक जो किया है आप लोगों के समक्ष है-
1 अनुदेशकों की नियुक्ति हेतु माननीय उच्च न्यायालय का आदेश्।
2 अनुदेशकों को ग्राम प्रधानों के नियंत्रण से निकालकर ऐसी जगह लाना जहाँ उन लोगों का स्तर है और स्थायी होने की दावेदारी का अस्तित्व विद्यमान रहे।
3 बीपीएड अनुदेशकों और सामान्य बीपीएड के लिए भी lt grade में नियुक्ति हेतु स्वयं माननीय उच्च न्यायलय के आदेश् को निरस्त कराकर उन्हें नियमावली में स्थान दिलवाया।
4 महिला अनुदेशिकाओं की सबसे बड़ी समस्या मातृत्व अवकाश का अधिकार दिलवाया।
इसके अलावा अनुदेशकों के भविष्य के लिए घातक 100 बच्चों की बाध्यता को समाप्त कराये जाने के लिए, ठीक उसी मामले में माननीय उच्च न्यायालय से 2 याचिकाएं खारिज़ हो जाने के बावजूद जिनमे एक खुद श्री अशोक खरे साहब की याचिका थी, 29527/2015 रिट पेटिशन पर बेजोड़ मेहनत के बाद दाखिल की जो स्वयं मेरी माता जी श्रीमती वीरबाला सिंह और रवि शास्त्री जी के नाम से दाखिल की है जिसमे NCTE और भारत सरकार का जवाब आ चुका था और उनके द्वारा दाखिल जवाब के एक एक बिंदु की काट का रिजोइंडर दाखिल कर चुका हूँ, जिसकी सुनवाई हो सके, एक अन्य याचिका दाखिल कराई गई।
न्यूनतम वेतन के लिए 19348 रिट याचिका 2014 में दाखिल कराई गई जो मेरे और आशुतोष शुक्ला के नाम से चल रही है जबकि अन्य लोगों जैसे विबेक रायबरेली आदि लोगों का नाम कोर्ट ने निकाल दिया था।इस याचिका में अब तक केवल भारत सरकार का जवाब आया है जो नाकाफी है।
और भी क़ि अनुदेशकों को रिज़वी वित्त समिति का लाभ अनुदेशकों को मिले इसके लिए 21606 रिट याचिका दाखिल की गयी है जो क़ि श्रीमती रूबी पंवार और श्रीमती मनीषा जी के नाम पर दाखिल की है, जिसमे अभी तक किसी भी पक्ष का जवाब नही आया है।
और भी क़ि अनुदेशकों को रिज़वी वित्त समिति का लाभ अनुदेशकों को मिले इसके लिए 21606 रिट याचिका दाखिल की गयी है जो क़ि श्रीमती रूबी पंवार और श्रीमती मनीषा जी के नाम पर दाखिल की है, जिसमे अभी तक किसी भी पक्ष का जवाब नही आया है।
मित्रों, जैसा क़ि आप भलीभांति जानते हो क़ि याचिका को बिंदुवार तैयार करना और उसे हर दिशा से सुरक्षित करके दाखिल करने का उत्तरदायित्व मैंने आपकी उम्मीदों के अनुरूप पूरी सटीकता से निभाया है।जबकि इनकी पैरवी की जिम्मेदारी विधिक सलाहकार नाम की एक समिति को दी थी जिनका काम सुनवाई सुनिश्चित कराना था।उन्होंने अपनी जिम्मेदारी नही नही निभाई, यह बात मेरे और उनके बीच विवाद का मुद्दा बनी और कोर्ट कार्यवाही को लेकर समिति का अकाउंट खोलने की बात कह कर और उस पर कोई कार्यवाही नही किया जाना, जिससे कोर्ट का पक्ष आर्थिक पक्ष से कमजोर किया गया।इस घोर लापरवाही और बार बार कहने के बावजूद समिति के बहरे हो जाने पर मैंने इससे अलग हो जाने का निर्णय ले लिया।
पैरवी की लापरवाही का हाल मै बताना चाहता हूँ क़ि न्यूनतम वेतन वाली याचिका पर आज तक सुनवाई कराके राज्य् सरकार को जवाब दाखिल कराने के लिए जो कोर्ट द्वारा 3 बार का समय देकर no more कराया जाता है, वह् आज तक भी नही हो पाता है और आज आप देखें उसकी तारीख 4 मई 2017 लगी है और आर्थिक सहायता का हाल यह है क़ि आज तक इस याचिका में सीनियर अधिवक्ता एंगेज नही है।
दूसरी 100 बच्चों वाली याचिका जो हम अनुदेशकों के प्राण है क़ि पैरवी की हालत यह है क़ि 2015 के बाद 2016 आ गया है, जिसके बीच मैंने NCTE और भारत सरकार दोनों के काउंटर पर अपना रिजोइंडर तैयार करके दाखिल कराते हुए अपना काम समय से पूरा कर चुका हूँ लेकिन आज तक उस पर सुनवाई नही कराई जा सकी है जबकि उसके लिए परेशान होकर मैंने एक अन्य याचिका भी दाखिल करा दी थी, बावजूद आज तक सुनवाई नही है और आज की तारीख में स्टेटस यह है क़ि उसमे सुनवाई क़ि कोई तारीख ही मुकर्रर नही है, कोई आदेश् नही नही है , तारीख का।
पैरवी की लापरवाही का हाल मै बताना चाहता हूँ क़ि न्यूनतम वेतन वाली याचिका पर आज तक सुनवाई कराके राज्य् सरकार को जवाब दाखिल कराने के लिए जो कोर्ट द्वारा 3 बार का समय देकर no more कराया जाता है, वह् आज तक भी नही हो पाता है और आज आप देखें उसकी तारीख 4 मई 2017 लगी है और आर्थिक सहायता का हाल यह है क़ि आज तक इस याचिका में सीनियर अधिवक्ता एंगेज नही है।
दूसरी 100 बच्चों वाली याचिका जो हम अनुदेशकों के प्राण है क़ि पैरवी की हालत यह है क़ि 2015 के बाद 2016 आ गया है, जिसके बीच मैंने NCTE और भारत सरकार दोनों के काउंटर पर अपना रिजोइंडर तैयार करके दाखिल कराते हुए अपना काम समय से पूरा कर चुका हूँ लेकिन आज तक उस पर सुनवाई नही कराई जा सकी है जबकि उसके लिए परेशान होकर मैंने एक अन्य याचिका भी दाखिल करा दी थी, बावजूद आज तक सुनवाई नही है और आज की तारीख में स्टेटस यह है क़ि उसमे सुनवाई क़ि कोई तारीख ही मुकर्रर नही है, कोई आदेश् नही नही है , तारीख का।
अब मेरे अलग हो जाने पर यह लोग पैरवी की पुकार करने लगे हैं , याचिकाओं को अपनी बताने में लग गए हैं।इन लोगों की याचिका की एक बानगी बता दूं क़ि विवेक रायबरेली और राकेश पटेल ने एक याचिका जिसमे विवेक ने अपनी भाभी की जिनकी काउंसिलिंग अनुदेशक के लिए ही चुकी थी, को नियुक्ति दिलवाने और पटेल ने किसी नीलिमा नाम की लड़की के लिए यही याचिका दाखिल की थी जिसमे मेरा किसी भी तरह का कोई रोल नही था। उन्हें इस छोटे से मामले में भी बार बार याचिका करने के बाद भी कोई सफलता नही मिली और जो यह लोग बार बार कह रहे है क़ि हमने भी पैसा दिया था याचिका के लिए तो बता दूं कि इनकी इन याचिकाओं के लिए मैंने इनको मूज़फ्फरनगर के एक लड़के से बार बार आर्थिक सहयोग कराया तो अगर पैसो से ही याचिकाएं सफल होती तो ये लोग क्यों सफल नही हुए और क्यों वह् मूज़फ्फरनगर का लड़का मुझसे बार बार कहता क़ि भैया क्यों मेरी याचिका में कुछ नही हो पाया?
यह लोग आपके जीवन से जुडी इतनी महत्वपूर्ण याचिकाओं को खुद लेकर चलने की बात कर रहे है, ऐसा इसलिए क़ि यह लोग सोच रहे है क़ि सारा काम तो हो चूका है केवल बहस होनी बाकि है और आदेश् आने पर तुम अपना नाम चमका लेना लेकिन उन्हें नही पता है क़ि सुनवाइयों के दौरान ही तो असली रस निकलता है, तब क्या होगा? मेरी, तुम्हारी और सब अनुदेशकों की जिंदगी से अपनी राजनीति चमकाने के नाम पर किसी को खेलने कैसे दिया जा सकता है?
फिर भी ये लोग मानेगें नही क्योकि एक तो धरने का ऑफ सीजन चल पड़ा है, दूसरा अब मंत्री जी के कहने पर आपके लिए एक म्यूच्यूअल ट्रांसफर लेकर उठ गए है क़ि अब धरना नही करेंगे, तो अगर करेंगे तो मंत्री जी के गुस्से का शिकार होना पड़ेगा और तीसरा यह क़ि मेरे अलग होने से कोर्ट का श्रेय छूटता दिखाई देने लगा ति पैरवी बड़े जोर शोर से याद आने लगी है, तो मैं उन्हें बताना चाहूंगा क़ि 100 बच्चों वाले मामले में मूल याचिका 29527 है जिससे तुम्हारा कोई मतलब नही है, इसलिए इसे छेड़ना भी मत, हाँ दूसरी का जो करना है सो मर्ज़ी,न्यनतम वेतन वाली याचिका में मेरे साथ आशुतोष शुक्ला है, जिससे मैं आज बात करना चाहता था क़ि अनुदेशक हित में मेरा साथ दे लेकिन आज ही मैंने उनकी कुछ असभ्य टिप्पणियां पढ़ी और विचार बदल दिया है, अब मैं और वह् इस याचिका में साथ नही रहेंगे, मै अलग हो जाऊंगा। बाकि रिज़वी वाली याचिका से भी उन लोगों का कोई मतलब नही है।
यह मेरे अनुदेशकों को लेकर, उनको खिलौना समझकर खेलने वाले नेताओं की घटिया राजनीती को मेरा जवाब है जिसे मैं आगे भी अपने कामों से देता रहुंगा।
यह मेरे अनुदेशकों को लेकर, उनको खिलौना समझकर खेलने वाले नेताओं की घटिया राजनीती को मेरा जवाब है जिसे मैं आगे भी अपने कामों से देता रहुंगा।