Saturday, September 17, 2016

राहुल गाँधी जी के घेराव का किया गया प्रयास

राहुल गाँधी जी के घेराव का किया गया प्रयास.

          कल इलाहाबाद में जिला स्तर पर मीटिंग आजाद पार्क में बुलाई गयी थी।चूंकि अधिसूचना लगने में अब अगर कोई राजनैतिक उथल पुथल नहीं होती है तो लगभग 50 से 60 दिन शेष बचे हैं।इसी के मद्देनजर जनपद के अनुदेशकों ने मीटिंग करने का अनुरोध किया था मीटिंग की बातों के बारे में आगे बताता हूँ।
चूंकि मीटिंग आजाद पार्क में चन्द्र शेखर आजाद जी की प्रतिमा के बगल ही रखी गयी थी संयोग से अखिल भारतीय कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री राहुल गाँधी जी की आजाद जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण का कार्यक्रम था।हालांकि कांग्रेस की सरकार देश और प्रदेश कहीं नहीं है लेकिन इतना बडा नेता इतनी आसानी से मिले तो उसे बिना अपने दुख दर्द को अवगत कराए छोड़ दिया जाए तो यह भी बुद्धिमानी नहीं होगी। इसीलिए बिना किसी पूर्व प्लान के जिले के सभी अनुदेशकों ने उनके घेराव की भरपूर कोशिश किया हालाँकि SPG और प्रशासन के अत्यधिक सक्रिय होने से घेराव बहुत ज्यादा तो सफल नहीं हो सका लेकिन जिले की महिला पदाधिकारी सीता जी,रीना जी, प्रतिभा जी व रीति जी की सक्रियता के कारण राहुल जी ने खुद बुलाकर ज्ञापन लिया।सुरक्षा कारणों से वहाँ की फोटो नहीं ली जा सकी। हालाँकि इसका बहुत बडा फर्क नहीं पडेगा लेकिन कोई भी मौका हमें चूकना नहीं है।
         मीटिंग में अनुदेशकों की सक्रियता के लिए लम्बी चर्चा हुई जिसमें सभी ने सहमति से एक ही बात कही कि अगर 50-60 दिन ही शेष बचे हैं तो अब संघर्ष में तेजी लायी जाए।जितना ज्यादा से ज्यादा धरना-प्रदर्शन/घेराव करने में हम सफल हो जाते हैं उतना ही हम सफलता के नजदीक पंहुच जायेंगे।55 दिन का लम्बा धरना हुआ एक दो बार विधान सभा को घेरने का प्रयास किया गया अधिकारियों ने दिलाशा देकर धरने को समाप्त कराया।समायोजन सहित कुछ बिंदुओंपर सहमति भी बनी जिनपर अधिकारियों ने हम सबको गुमराह भी बहुत किया लेकिन यह सभी संगठनों के साथ होता ही है ये अधिकारी इसी तरह से सबको एक निश्चित सीमा तक गुमराह करने की भरपूर कोशिश करते ही हैं।हम चाहे जब शुरू करेंगे हम सबको इन सबसे गुजर कर ही आगे बढ़ना होगा।
           चूंकि समय बहुत कम बचा है ऐसी स्थिति में अनिश्चित कालीन धरने से ज्यादा घेराव और प्रदर्शन ही कारगर होगा।इन दिनों सोशल मीडिया के तमाम जांबाज सिपाही 4000 माध्यमिक कम्प्यूटर अनुदेशकों का उदाहरण देते फिर रहे हैं लेकिन कोई भी इस बात पर चर्चा कदापि नहीं कर रहा है कि उन्होंने कितनी लाठियां खाईं और कितनी बार खायीं।मैंने देखा है कि जब पुलिस प्रशासन से आमने-सामने का मौका आता है तब लोग ऐसे चुपके से निकलते हैं जैसे उनको जबरन लाया गया हो वहाँ।
           इस समय केवल और केवल प्रदर्शन/घेराव और आक्रामक रणनीति तैयार होनी चाहिए।अब अनिश्चित कालीन धरने का समय नहीं बचा है।अब विधान सभा को घेरने और लाठी खाने के अलावा कोई रणनीति कारगर नहीं होगी।लोग संगठनों की सफलता की नसीहत तो बहुत देते हैं लेकिन उसके पीछे की चीजों को देखना नहीं चाहते हैं।इस समय अगर हमसब लाठियां खाते हैं तो उसका बहुत दूरगामी परिणाम होगा।दूरगामी परिणाम यह होगा कि यदि हमें तत्काल सफलता नहीं भी मिलती है और संघर्ष को आगे तक ले जाना पड़ता है तो अगली सरकार मे यदि समाजवादी पार्टी की वापसी होती है तो हम यह कहने के दावेदार होंगे कि पिछले तीन वर्षों से हम संघर्ष रत हैं और पिछली सरकार में हमें पीटा भी गया था और यदि किसी दूसरी पार्टी की सरकार बनती है तो हम उस मुख्यमंत्री से यह दावे के साथ कह सकेंगे कि पिछली सरकार में हम बहुत सताए गये थे और पीटे भी गये थे इसीलिए हम सब आपके साथ आ गये थे।इस तरह से हमारी दावेदारी दोनों जगहों पर मजबत रहेगी।इसलिए हमें अब थोडा आक्रामक होना ही पड़ेगा।
           प्रदेश के एक तथाकथित अपने आप को सर्वाधिक बुद्धिमान समझने वाले अनुदेशक नेताजी की लम्बी चौड़ी पोस्ट पढ़ने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ जिसमें उन्होंने शुक्ला ग्रुप का कई बार जिक्र करते हुए धरने की रणनीति को पूरी तरह से खारिज कर दिया और संगठन के बारे में तमाम उल्टी सीधी बातें लिखी।मैं उन महाशय से कहना चाहूँगा कि इतिहास उठाकर देख लें कि किसी भी संगठन को जब भी कुछ मिला है तो संगठन और संघर्ष से ही मिला है।कोर्ट ने कितने लोगों को नियमित कराया है यह सब जानते हैं।समय कम बचा है उन महाशय से अनुरोध है कि अपनी राजनीति कुछ दिन के बाद करें अभी संघर्ष कर लेनें दें।
            अंत में मैं अनुरोध करूँगा संगठन के पदाधिकारियों से कि सीघ्रातिसीघ्र एक दिवशीय प्रदर्शन/घेराव की रणनीति बनाकर डेट फाइनल करके जल्द ही घोषणा करें।एक निवेदन यह भी है कि रणनीति बनाते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखे कि दोनों संगठनों के धरने आपस में कदापि टकराने न पाएं।मैं तो दोनों संगठनों से अनुरोध करूँगा कि अब केवल घेराव और आक्रामक रणनीति तैयार करें और दोनों संगठन मिलकर 50-60 दिन में तीन-चार बार घेराव कर दें।यदि दोनों संगठन तैयार नहीं भी होते हैं तो तेजस्वी शुक्ल से तो अनुरोध करूँगा ही कि आक्रामक रणनीति तैयार करें और सम्भव हो तो बचे हुए समय में दो बार घेराव कर दिया जाए।इस समय यह कदापि न देखें कि किसी धरने से क्या मिला।मिलेगा जरूर लेकिन परिणाम दूरगामी है।
             आप सभी का भी आह्वान करूँगा कि सोशल मीडिया की काल्पनिक दुनिया पर संगठनों के उपर या उनकी उपलब्धियों के उपर डिबेट न करके लड़ने-भिड़ने को तैयार हो जाइए और वास्तविक धरातल पर अपने नेताओं को भी ऐसा करने के लिए विवश करिए।यदि आप संघर्ष करते रह गये तो यह सम्भव है कि सफलता आपको मिल भी सकती है और नहीं भी मिल सकतीहै लेकिन यदि केवल डिबेट करके घर बैठ जाते हैं तो यह निश्चित है कि आपको कुछ नहीं मिलेगा।इसलिए प्रयत्न करते रहिए कभी हार मत मानिए।सफलता कब मिल जाएगी यह निश्चित नहीं होता है।धन्यवाद।

लाख दलदल हो 
पाँव जमाए रखिये
हाथ खाली ही सही
हाथ उपर उठाये रखिये
कौन कहता है छलनी में
पानी रुक नही सकता
बर्फ बनने तक
हौसला बनाये रखिये।